अमेज़न प्राइम पर इसी हफ्ते रिलीज हुई ड्राई डे कॉमेडी जॉनर में रखी गई है। इस फिल्म का निर्देशन सौरभ शुक्ला ने किया है और कथा भी उनकी ही है। फिल्म लगभग दो घंटे की है और अन्नू कपूर जैसे मंजे हुए तथा जितेन्द्र कुमार जैसे सधे हुए कलाकार इस फिल्म में मुख्य भूमिका में दिखाई देते हैं।
फिल्म का पात्र गन्नू (जितेन्द्र कुमार) क्षेत्रीय इलाके में नेता बनके उभरना चाहता है। वह प्रभावी नेता दाउजी (अन्नू कपूर) के संपर्क में है, जो शराब के क्षेत्रीय ठेके से भी जुड़े हुए हैं। गन्नू को खुद भी शराब की लत है इसलिए वह भी ठेके का समर्थक है। गाँव की कई महिलाएं ठेके से परेशान हैं, लेकिन कुछ कर नहीं पातीं। गन्नू की बीबी (श्रेया पिलगांवकर) परिवार के प्रति गन्नू के लापरवाह रवैये से संतुष्ट नहीं है। इन सब स्थितियों के बीच गन्नू एक दिन शराब पीकर शराब बंदी की बात करने लगता है। कहानी यहीं से करवट लेती है।
कुछ मिनटों का ड्राई डे
यूँ तो ड्राई डे का जॉनर कॉमेडी है लेकिन फिल्म शराब की लत और शराब बंदी पर आधारित है। आप भी जानते हैं कि यह विषय कॉमेडी के लिए उपयुक्त नहीं है। हालाँकि गंभीर मुद्दों पर भी यथार्थपरक और अच्छी कॉमेडी बनते हुए हमने देखा है। फिल्म के शुरुआती दृश्य कुछ गुदगुदाते भी हैं। लेकिन फिल्म जब करवट लेती है तो फिर वापस नहीं लौटती और उसके बाद फिल्म देखना भारी हो जाता है।
न तो फिल्म हास्य पैदा कर पाती है, न ही किसी मुद्दे की गंभीरता को बता पाती है। यानी हंसाने की कोशिश हंसी नहीं पैदा करती और गंभीर दृश्यों में भी कोई संवेदना नहीं है। गन्नू की शराब विरोधी बातें सुनकर महिलाओं में पनपने वाला जोश और विश्वास नकली लगता है। शराब की वजह से पारिवारिक समस्याएँ हो रही हैं, कहा गया है पर दिखाई नहीं देता। यहाँ तक कि फिल्म में आत्मदाह का भी एक दृश्य है, लेकिन वह ऐसे मूर्खतापूर्ण फैसले की तरह दिखाया गया है, जो कोई करुणा नहीं पैदा करता।
गंभीर मुद्दों के भीतर हास्य खोजकर लोगों को सहज ढंग से सचेत करने की बजाय मुद्दे को ही हास्यास्पद बना दिया गया है। लगता है जैसे मसाला फिल्मों की तरह ड्राई डे में कई चीजें एक साथ बेवजह ठूंस दी गई हैं। अन्नू कपूर को तो फिर भी फिल्म ने मौका दिया है, लेकिन जितेन्द्र कुमार जैसे कलाकार को फिल्म कमजोर ही करती है। कहें तो फिल्म मनोरंजन तो नहीं कर पाती निराश जरूर करती है।