20 दिसम्बर को नेटफ्लिक्स पर रिलीज हुई फिल्म उस्ताद (Maestro) एक बायोग्राफी फिल्म है। यह फिल्म संगीतकार लियोनार्ड बर्नस्टीन और उनकी पत्नी फेलीशिया मोंटेलेग्रे के जीवन पर आधारित है। बर्नस्टीन का किरदार फिल्म में ब्रेडली कूपर ने निभाया है जो फिल्म के निर्देशक भी हैं। 2018 में भी कूपर म्यूजिक जॉनर की एक प्रशंसनीय फिल्म ए स्टार इज बॉर्न बना चुके हैं। जाहिर है कि इस लिहाज से भी उनका निर्देशन और अभिनय देखने लायक है। किसी भी अच्छी बायोग्राफी फिल्म की तरह ही इस फिल्म में भी जीवन के उतार-चढ़ाव आपको देखने को मिल जाएँगे।
फिल्म की शुरुआत बूढ़े हो चुके बर्नस्टीन के (ब्रेडली कूपर) इंटरव्यू से होती है। यहीं से फिल्म 1943 में वापस लौट जाती है जब बर्नस्टीन को संयोगवश म्यूजिक कंडक्टिंग का एक बड़ा मौका मिला था। बर्नस्टीन के जीवन के ज्यादा से ज्यादा पहलुओं को फिल्म में दिखाने की कोशिश की गई है। इस लिहाज से फिल्म संगीत के क्षेत्र में उनकी विविध रुचियों को भी बताती है और उनके सेक्सुअल रुझानों का भी संकेत करती है। पारम्परिक ढर्रे से अलग जीवन के चुनाव की मुश्किलों पर भी फिल्म हल्की रौशनी डालती है।
अभिनय और निर्देशन
संगीत में दिलचस्पी रखने वाले दर्शकों को फिल्म जरूर अच्छी लगनी चाहिए। जहाँ तक लियोनार्ड बर्नस्टीन का सवाल है तो कूपर ने काफी अच्छा परफॉर्म किया है। अपने अभिनय के जरिए उन्होंने न केवल चेहरे के हाव-भाव बल्कि बर्नस्टीन के उस अंदरूनी जोश को भी परदे पर ला दिया है जो किसी कलाकार के भीतर होता है।
निर्देशन के लिहाज से कूपर ने बदलते समय को दिखाने के लिए काफी अच्छे प्रयास किये हैं। कलर और ब्लैक एंड वाइट तकनीक के चलते बरबस शिंडलर लिस्ट और स्पिलबर्ग याद आ जाते हैं। वैसे प्रोडक्शन के लेवल पर स्पिलबर्ग भी इस फिल्म से जुड़े हुए हैं। समय को फिल्म ने सिनेमाई अंदाज में भी दिखाया है। न केवल रंग बल्कि परदे का आस्पेक्ट रेशियो फिल्म में बदलता है। फैशन के लिहाज से भी फिल्म ने समय को पकड़ने की कोशिश की है।
लियोनार्ड बर्नस्टीन की बायोग्राफी
बायोग्राफी की कई सीमाएं भी होती हैं, उनमें से एक है अन्य पात्रों के साथ न्याय न कर पाना। बर्नस्टीन के साथ फेलीशिया के रिश्ते को अहमियत देने के कारण फेलीशिया का चरित्र भी फिल्म में उभर कर आया है और कैरी मुलिगन ने बेहतरीन एक्टिंग के जरिये चरित्र में जान डाली है। लेकिन फेलीशिया का चरित्र प्रेमिका, पत्नी और पारिवारिक भूमिकाओं तक ही सिमट गया है। फिल्म फेलीशिया के अन्य पक्षों पर ध्यान नहीं दे पाती। खासकर फेलीशिया के राजनीतिक पक्ष जैसे वियतनाम युद्ध के विरोध ब्लैक मूवमेंट के समर्थन वगैरह को भी फिल्म अगर तवज्जो देती तो शायद और ज्यादा ध्यान खींचती।
हालाँकि यह आलोचना नहीं है और बायोग्राफी से ऐसी मांग करना भी शायद जायज नहीं है। बायोग्राफी के लिहाज से म्यूजिक कंडक्टर का ऐसा शानदार अभिनय कूपर ने किया है कि कंडक्टर के एक्शन से अपरिचित दर्शक उसे ओवर एक्टिंग या पागलपन भी मान सकता है। फिल्म निर्देशन से लेकर एक्टिंग तक सभी स्तरों पर बेहतरीन है। संगीत अगर आपको प्रभावित करता है तो फिल्म सचमुच प्रभावित करने वाली है।