Home मूवीअंग्रेजी ऑडियो नेफ़ेरियस : मृत्युदंड और शैतान की सोच

नेफ़ेरियस : मृत्युदंड और शैतान की सोच

by Team Titu
4 minutes read
नेफ़ेरियस

2023 में आई नेफ़ेरियस फिल्म की कथा और संवाद भगवान और शैतान की धारणा से जुड़े हैं। फिल्म की लम्बाई कम है और संवाद अच्छे हैं इसलिए देखना दिलचस्प है। हालाँकि फिल्म संवादों पर ही निर्भर है इसलिए विचारों और सिद्धांतों में रुचि रखने वाले दर्शकों को ज्यादा अच्छी लगेगी। चूँकि फिल्म एक कैदी के मृत्युदंड से जुड़ी है, इसलिए न्याय व्यवस्था में दिलचस्पी रखने वालों के लिए भी अच्छी है।

कई देशों की तरह ही अमेरिका में भी सजा सोच-समझकर क़त्ल करने वाले इन्सान को ही दी जा सकती है, मानसिक रोगियों को नहीं । इसलिए जेल में बंद कैदी एडवर्ड (Sean Patrick Flaner) को मौत की सजा देने से पहले एक मनोचिकित्सक जेम्स (Jordan Belfi) उसकी जाँच करने आता है। जेम्स एक नास्तिक है। बात करने पर एडवर्ड कहता है कि एडवर्ड नेफ़ेरियस के वश में है। नेफ़ेरियस खुद को शैतान बताता है और इस लिहाज से ड्युअल आइडेंटिटी का शिकार मानते हुए जेम्स को लगता है कि उसे सजा नहीं मिलनी चाहिए। लेकिन कुछ ऐसी चीजें होती हैं कि बात पेचीदा हो जाती है।

बहरहाल, हमारी ज्यादा दिलचस्पी कहानी की बजाय फिल्म के विषय में है, खासकर उसकी सार्थकता के लिहाज से। हालाँकि भगवान और शैतान के रिश्ते और हम इंसानों के साथ उन दोनों के सबंध के किस्से बड़े ही दिलचस्प लगते हैं। और इस लिहाज से फिल्म मजेदार है। लेकिन ऐसे विषय कथा को यथार्थ से दूर करते दिखाई देते हैं। कम से कम ऐसा मान तो लिया ही जाता है। खासकर फिल्म हॉरर श्रेणी में हो, शैतान उसका विषय हो तो तार्किकता की बात कैसे की जाए? लेकिन ज़रूरी नहीं कि फिल्म की कथा काल्पनिक हो तो फिल्म का यथार्थ से सम्बन्ध ही न हो।

इस फिल्म में कई हिस्से हैं जो तार्किक तौर पर इसकी व्याख्या को मुश्किल बनाते हैं। लेकिन हम कुछ खास चीजों पर ध्यान देंगे जो बहुत सीधी और साफ़ हैं। मृत्युदंड का मुद्दा किसी भी देश के न्यायिक पक्ष का एक महत्वपूर्ण पहलू है, और सारे आवरण हटा दिए जाएं तो फिल्म का मुख्य मुद्दा भी यही है।

शैतान के रूप में नेफ़ेरियस ने हमारी दुनिया के तमाम पक्षों पर बात की है। वह इंसानों की बुराइयों और उनके सभ्य समाज को इस कदर उघाड़ने लगता है कि जेम्स को सफाई देने की ज़रूरत महसूस होने लगती है। जेम्स गैर बराबरी और तमाम चीजों में सुधार की बात बताने लगता है, जो फ़िलहाल हमारे भ्रम के सिवाय कुछ नहीं लगता। यानी नेफ़ेरियस की बातों को सुनें तो तार्किक तौर पर असल में हम इन्सान ही शैतान लगेंगे, वह भी अपने समाज और संस्कृति की पूरी साज-सज्जा के साथ।

बहरहाल, फिल्म के एक दृश्य में नेफ़ेरियस जेम्स को पकड़ लेता है और अपने हाथ में लगी हथकड़ी उसके गले में कस देता है। यह दृश्य काफी कीमती है। क्योंकि तब नेफेरियस जेम्स से कहता है कि अपनी जिंदगी के लिए मुझसे भीख मांगो, रोओ और आखिरकार नेफ़ेरियस उसे छोड़ देता है। मजेदार यह है कि इस छोटे से दृश्य में नेफेरियस हत्यारे और शिकार के बीच के संबंधों पर बात करता है। उसकी बात हर जगह लागू होती है, और साथ ही खुद उस व्यवस्था पर भी लागू होती है जो मृत्युदंड को सही ठहराती है।

जब नेफेरियस जेम्स कि गर्दन दबाता है उस दृश्य में वह शैतान ही रहता है, लेकिन थोड़ी देर के लिए सजा देने कि ताकत उसके हाथ में होती है, जैसे कि किसी व्यवस्था के पास भी होती है। अप्रत्यक्ष तौर पर वह कहता है कि जेम्स जिस व्यवस्था का पैरोकार है वह केवल गिड़गिड़ाने और भीख मांगने वालों पर रहम करती है। जो व्यवस्था के आगे नहीं झुकते उन्हें सजा और मौत ही मिलती है।

लेकिन सजा और मौत देकर क्या कोई व्यवस्था न्यायपरक बन जाती है? इंसानियत के गुणों में सजा नहीं माफ़ी को ही गिना जाता है, और इसीलिए सजा देकर कोई व्यवस्था कभी न्याय नहीं कर सकती। आपको यह बात अजीब लग सकती है, यह मुद्दा बहस वाला हो सकता है, लेकिन इस पर सोचना ज़रूरी है।

हॉरर श्रेणी कि यह फिल्म मृत्युदंड पर बनी फिल्मों से जोड़कर देखनी चाहिए। और इस विषय में दिलचस्पी रखने वाले दर्शकों के लिए जरूर देखने लायक है।

Related Posts

Leave a Comment